भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जीवन सादगी, संघर्ष और ईमानदारी का प्रतीक रहा। उनके निधन के बाद उनकी अंतिम यात्रा दिल्ली के ऐतिहासिक Nigam Bodh Ghat पर संपन्न हुई। यह स्थान, जो भारत के कई महान नेताओं की अंतिम यात्रा का गवाह रहा है, मनमोहन सिंह जैसे सादगीप्रिय नेता की विदाई के लिए भी एक उपयुक्त स्थल साबित हुआ।
Nigam Bodh Ghat का महत्व
दिल्ली के यमुना किनारे स्थित Nigam Bodh Ghat राजधानी का सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित घाट है। यह घाट सिर्फ अंतिम संस्कार के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी जाना जाता है। देश के कई प्रसिद्ध नेता, लेखक और समाजसेवी यहां से अपनी अंतिम यात्रा पर विदा हुए हैं।
Nigam Bodh Ghat पर पवित्रता और शांति का विशेष माहौल होता है, जो इसे सभी धर्मों और संस्कृतियों के लोगों के लिए आदरणीय बनाता है। मनमोहन सिंह जैसे सादगी भरे नेता की अंतिम विदाई भी इसी पवित्र स्थल पर हुई। इस घाट का शांत वातावरण उनके जीवन की सादगी और उनकी निष्ठा को दर्शाता है।
मनमोहन सिंह का संघर्षपूर्ण जीवन
मनमोहन सिंह का जीवन संघर्ष और अनुशासन का प्रतीक था। विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से भारत आया। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और 1957 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में फर्स्ट क्लास ऑनर्स की डिग्री हासिल की।
उनकी बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरुशरण’ में बताया है कि स्कॉलरशिप पर पढ़ाई करते समय उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पैसों की कमी के कारण वे कई बार भोजन छोड़ देते थे और केवल चॉकलेट खाकर दिन गुजारते थे। यह किस्सा उनकी मेहनत और आत्मनिर्भरता को उजागर करता है।
Nigam Bodh Ghat पर अंतिम यात्रा
मनमोहन सिंह की अंतिम यात्रा में उनके परिवार, करीबी दोस्तों और राजनीतिक सहयोगियों ने हिस्सा लिया। Nigam Bodh Ghat पर उनकी अंतिम विदाई ने उनके जीवन की सादगी और ईमानदारी को खूबसूरती से दर्शाया।
उनकी विदाई के दौरान, देशभर से लोग और नेता उनकी सादगी और निस्वार्थ सेवा को याद कर रहे थे। उनके जीवन और कार्यों ने न केवल भारतीय राजनीति में, बल्कि हर आम व्यक्ति के जीवन में एक प्रेरणा दी। उनकी अंतिम यात्रा पर आए लोग इस बात का प्रमाण थे कि मनमोहन सिंह की निष्ठा और देशसेवा को हर वर्ग और समुदाय ने सराहा।
परिवार के साथ यादगार पल
मनमोहन सिंह के जीवन का एक अनछुआ पहलू उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियां और सादगी थी। उनकी बेटी दमन सिंह ने बताया कि पिकनिक और गेट-टुगेदर के दौरान वह अमृता प्रीतम की कविता ‘आखां वारिस शाह नूं …’ और बहादुर शाह जफर की गजल ‘लगता नहीं है जी मेरा’ गाना पसंद करते थे।
उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी बहुत अच्छा था। वह परिवार के सभी सदस्यों को मजेदार निकनेम दिया करते थे। अपनी पत्नी गुरुशरण कौर को ‘गुरुदेव’ और अपनी बेटियों को ‘किक’, ‘लिटिल नोन’ और ‘लिटिल राम’ कहकर पुकारते थे। यह उनके मानवीय पक्ष को दर्शाता है, जो सादगी और सौहार्द से भरपूर था।
Nigam Bodh Ghat: सादगी की कहानी का अंत
मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार ने उनकी सादगी और महानता को और भी स्पष्ट कर दिया। Nigam Bodh Ghat पर उनके जीवन को सम्मान देते हुए उनकी अंतिम विदाई संपन्न हुई। उनकी विदाई ने हमें यह याद दिलाया कि महानता दिखावे में नहीं, बल्कि विचारों और कर्मों में होती है।
Nigam Bodh Ghat की ऐतिहासिक भूमिका
इतिहासकार बताते हैं कि Nigam Bodh Ghat पर केवल आम लोग ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े ऐतिहासिक व्यक्तित्वों ने भी अपनी अंतिम यात्रा पूरी की है। यह घाट भारतीय परंपराओं और रीतियों का प्रतीक है। आधुनिक समय में भी यह जगह अपने मूल्यों और गरिमा को बनाए हुए है।
निष्कर्ष
मनमोहन सिंह का जीवन और उनकी अंतिम यात्रा, दोनों ही सादगी और निष्ठा के प्रतीक हैं। Nigam Bodh Ghat पर उनकी विदाई ने न केवल उनके जीवन के सिद्धांतों को सम्मान दिया, बल्कि उनके संघर्ष और सफलता की कहानी को भी एक नई पहचान दी। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व विनम्रता और ईमानदारी से ही परिभाषित होता है।