1963 में कश्मीर में एक ऐसी घटना घटी जिसने न केवल कश्मीर, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को भी बढ़ा दिया। यह घटना थी पैंगबर मुहम्मद के पवित्र अवशेष “मू-ए-मुकद्दस” की चोरी की। इस अवशेष का एक छोटा सा हिस्सा, जो पैंगबर की दाढ़ी के बाल के रूप में था, कश्मीर के हजरतबल दर्गाह में सुरक्षित रखा गया था। यह अवशेष 1635 में भारत लाया गया था, जब सईद अब्दुल्ला ने इसे कर्नाटक के विजापुर में रखा था। इसके बाद यह अवशेष कई बार स्थानांतरित हुआ, लेकिन अंततः यह कश्मीर के हजरतबल में सुरक्षित रखा गया था।
लेकिन 26 और 27 दिसंबर 1963 की रात को यह अवशेष अचानक गायब हो गया। जब यह खबर फैलने लगी, तो कश्मीर में गुस्से की लहर दौड़ गई। हजारों लोग काले झंडे लेकर हजरतबल के पास इकट्ठा हुए और इस चोरी के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। कश्मीर में हिंसा और आगजनी की घटनाएँ बढ़ने लगीं। मुख्यमंत्री ख्वाजा शम्सुद्दीन ने चोरों को पकड़ने वाले को 1 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की, साथ ही उसे आयुभर 500 रुपये की पेंशन देने की बात कही।
इस घटना के बाद पाकिस्तान ने इसे एक सनसनीखेज तरीके से प्रचारित किया और कश्मीर में मुसलमानों के खिलाफ हो रहे अन्याय के रूप में इसे प्रस्तुत किया। पाकिस्तान में भी इस घटना के बाद हिंसा का माहौल बन गया और बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्व पाकिस्तान) में भी इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए। भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश के तीनों देशों में इस हिंसा के कारण 400 से ज्यादा लोग मारे गए।
यह मामला इतना गंभीर हो गया कि भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने CBI के प्रमुख BN मलिक को श्रीनगर भेजा और कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए विशेष कदम उठाए गए। रेडियो पर शांति की अपील की जाने लगी। 1 जनवरी 1964 को नेहरू ने कश्मीर में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लाल बहादुर शास्त्री, CBI प्रमुख और गृह सचिव वी विश्वनाथन को भेजा।
4 जनवरी 1964 को एक और खबर आई कि पैंगबर के पवित्र अवशेष “मू-ए-मुकद्दस” को बरामद कर लिया गया है। CBI प्रमुख ने नेहरू को फोन कर यह जानकारी दी, और नेहरू ने उन्हें सराहा कि उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान में जाने से बचाया। हालांकि, फिर भी इस अवशेष के असली होने को लेकर संदेह पैदा हुआ, जिससे फिर से तनाव बढ़ने लगा।
तब कश्मीर के प्रसिद्ध संत मीराक शाह कशानी को इस अवशेष की सत्यता की जांच करने के लिए बुलाया गया। उन्होंने इस अवशेष की पुष्टि की और बताया कि यह सच में पैंगबर का पवित्र अवशेष है। इस पुष्टि के बाद कश्मीर में स्थिति शांत हुई और तनाव खत्म हुआ।
यह घटना आज भी कश्मीर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में याद की जाती है। कुछ लोग मानते हैं कि कश्मीर के मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद के घर एक व्यक्ति बीमारी के कारण इस अवशेष को देखने आया था और उसी के बाद यह अवशेष गायब हो गया था। इस घटना के बाद कश्मीर में जो बवाल मचा था, उसकी गूंज कई सालों तक सुनाई देती रही।